Nepal: बड़ी तेजी से बिगड़ रही है नेपाल की आर्थिक स्थिति, देश में ऋण मिलना हुआ मुश्किल

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जानकारों के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद नेपाल ने ऊंची आर्थिक वृद्धि दर हासिल की। लेकिन उसके साथ ही देश राजनीतिक अस्थिरता का शिकार हो गया। पिछले साल सरकार ने चुनाव को ध्यान में रख कर कुछ फैसले लिए, जिनका खराब दूरगामी असर हुआ है.

नेपाल की अर्थव्यवस्था पर राजनीतिक अस्थिरता और अस्थिर आर्थिक नीतियों का बहुत बुरा असर हुआ है। नतीजतन, सरकार को लगातार आर्थिक वृद्धि का अपना अनुमान गिराना पड़ रहा है। इस वित्त वर्ष की शुरुआत में तत्कालीन सरकार ने बढ़-चढ़ कर यह एलान किया था कि नेपाल की आर्थिक वृद्धि दर इस साल आठ फीसदी रहेगी। लेकिन छमाही समीक्षा के बाद यह अनुमान गिरा कर चार फीसदी कर दिया गया। नेपाल में वित्त वर्ष 16 जुलाई से शुरू होता है।

छमाही समीक्षा के बाद अर्थशास्त्रियों ने कहा था कि सरकार ने जो नया अनुमान घोषित किया है, वह हकीकत से बहुत ज्यादा है। अब देश के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने कहा है कि अर्थव्यवस्था 1.86 फीसदी से ज्यादा की दर हासिल नहीं कर पाएगी। कार्यालय ने एक बयान में कहा- ‘अर्थव्यवस्था की यही असली सूरत है।’

विशेषज्ञों के मुताबिक यह पहला मौका है, जब राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने अपने अनुमानित विकास दर को एशियन डेवलपमेंट बैंक, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी बहुपक्षीय एजेंसियों के अनुमान से भी नीचे कर दिया है। कार्यालय के मुख्य सांख्यिकीविद् राम प्रसाद थपलिया ने कहा- ‘हमने अपने निष्कर्ष सामने रखे हैं। हमारे आकलन का निष्कर्ष यह है कि देश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है।’

जानकारों के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद नेपाल ने ऊंची आर्थिक वृद्धि दर हासिल की। लेकिन उसके साथ ही देश राजनीतिक अस्थिरता का शिकार हो गया। पिछले साल सरकार ने चुनाव को ध्यान में रख कर कुछ फैसले लिए, जिनका खराब दूरगामी असर हुआ है। अब स्थिति यह है कि इस साल 15 जुलाई को जब मौजूदा वित्त वर्ष खत्म होगा, तब देश की अर्थव्यवस्था का कुल आकार 5.38 खरब रुपये ही होगा।

अर्थशास्त्री चंदन सपकोटा ने कहा है कि सरकार ने चालू खाते का घाटा नियंत्रित रखने और विदेशी मुद्रा कोष में वृद्धि के लिए ब्याज दर बढ़ाने की नीति अपनाई। उस कारण देश में उपभोक्ता मांग घट गई। उसका असर जीडीपी वृद्धि दर के घटने के रूप में सामने आ रहा है। इसके पहले 2015-16 में नेपाल में आर्थिक वृद्धि दर 1.9 फीसदी रही थी, जो (अगर 2019-20 के कोरोना काल को छोड़ दें तो) सबसे कम वृद्धि दर का अब तक का रिकॉर्ड है। 2015 में नेपाल भीषण भूकंप का शिकार हुआ था।

सांख्यिकी कार्यालय में नेशनल एकाउंट विभाग के निदेशक ईश्वरी प्रसाद भंडारी ने अखबार काठमांडू पोस्ट को बताया कि 1.86 फीसदी वृद्धि दर का अनुमान नौ महीनों के वास्तविक आंकड़ों और बाकी तीन महीनों के अनुमान पर आधारित है। उन्होंने बताया कि नेपाल की अर्थव्यवस्था में 24.12 फीसदी योगदान करने वाले कृषि क्षेत्र में इस वित्त वर्ष में वृद्धि दर सिर्फ 2.73 फीसदी रहेगी। उन्होंने बताया कि सर्दियों में बारिश ना होने का फसलों पर खराब असर हुआ। उधर मांस और अंडों का उत्पादन भी बढ़ नहीं सका है।

लेकिन अर्थशास्त्री केशव आचार्य ने कहा है कि विदेशी मुद्रा पर सरकार ने लंबे समय तक नियंत्रण लगाए रखा। यही नीति आर्थिक वृद्धि दर में मौजूदा गिरावट का मुख्य कारण बनी है। सख्त मौद्रिक नीति के कारण देश में ऋण मिलना मुश्किल हो गया, रियल एस्टेट सेक्टर में धीमापन आ गया और शेयर बाजारों में गिरावट दर्ज हुई। इन सबका असर अर्थव्यवस्था के गिरने और बेरोजगारी बढ़ने के रूप में सामने आ रहा है।

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