केरल से आए यात्रियों का छलका दर्द “बहुत दिक्कतों का सामना करके यहां पहुंचे है”

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भारत सरकार द्वारा इस मुश्किल स्थिति में चलाई गयी राहत ट्रेन के द्वारा कई मजदूरों को केरल से लखनऊ लाया गया।
ट्रेन से उतरे यात्रियों ने लखनऊ तक पहुंचने में हुई दिक्कत के बारे में बात करते हुए कहा कि उनसे टिकट के पैसे लिए गए, जिसका इंतजाम करने के लिए उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

हरदोई निवासी रामश्री ने बताया कि लॉकडाउन की शुरुआत में सेठ ने खाने का इंतजाम किया। उसके बाद इतने मजदूरों को खाना नहीं दे सकते थे। जहां सुनते थे की खाना बंट रहा, वहीं बच्चे को लेकर दौड़ जाती थी, लेकिन वो भी कुछ दिन बाद बंद हो गया। किसी अधिकारी के पास जाओ तो वो कहता खाना खत्म हो गया। इसके बाद सेठ से उधार लेकर टिकट खरीदा।

आपको बता दें कि दूसरी ओर राजधानी से मंगलवार को छत्तीसगढ़ के लिए रवाना की गई ट्रेन के किसी भी यात्री से टिकट के पैसे नहीं लिए गए। इस ट्रेन में 1584 यात्रियों को चढ़ाया गया। ये सभी लोग बीते एक महीने से लखनऊ में फंसे हुए थे।

डीसीपी पश्चिम सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी का कहना है कि इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि किसी भी यात्री से ट्रेन में चढ़ने का कोई भी पैसा न लिया जाए। वहीं डीएम अभिषेक प्रकाश ने बताया कि इनके अलावा भी बाहरी राज्यों के जो लोग यहां फंसे हुए हैं, उन्हें भिजवाने के सभी इंतजाम किए जा रहे हैं। सभी यात्रियों को खाने के साथ जूस के पैकेट भी दिए गए।

इतनी मुश्किल घड़ी में जहां कुछ मजदूर किसी तरह अपने घर पहुंचे है, तो वहीं कुछ मजदूर सरकार द्वारा किए गए प्रबंध से खुश दिखे ऐसे ही छत्तीसगढ़ जा रहे श्रमिक दीपक बोले- बहुत अच्छी सुविधा मिली।

राजधानी में अभी तक मजदूरी कर रहे थे। दीपक के पास एक भी पैसा नहीं बचा था। छत्तीसगढ़ में भी परिवार के पास खाने को कुछ नहीं है। वहां जाकर कुछ न कुछ इंतजाम करूंगा। यहां पर ट्रेन पर चढ़ने से पहले बहुत अच्छी सुविधा दी गई।

रतनखंड की रहने वाली द्रौपदी कहती हैं कि अब तक जो लोग खाना बांटने आते थे, उन्होंने खाना बांटना बंद कर दिया। सरकार अगर ट्रेन न चलाती तो पैदल निकल जाते अपने गांव के लिये। सरकार ने टिकट फ्री कर दिया यही बड़ी बात है।

इन सबके अलावा कुछ लोग ऐसे भी है जो अब दूसरे शहर में काम के लिए जाने को मना कर रहे हैं। ऐसे ही एक मजदूर बांगरमउ के रहने वाले अशोक है, जो कि पिछले एक साल से केरल में थे। लॉकडाउन के बाद से एक संस्था की तरफ से खाना दिया जाता था। 20 दिन बाद बंद हो गया। जो लोग जानते भी थे वो लोग भी मदद को आगे नहीं आए। अशोक ने कहा कि गांव में खेती करके रह लूंगा, लेकिन दूसरे शहर नहीं जाऊंगा। इतना ही नहीं उन लोगों से वहां टिकट के पैसे भी लिए गए।

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