राहुल गांधी की न्यूनतम आमदनी की गारंटी की घोषणा एक लोकलुभावन वादा है!

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क्या देश के खजाने में इतना पैसा है जो इस योजना के तहत खर्च किया जा सके।

आज देश में गरीबों  और अमीरों के बीच असमानता लगातार बढ़ती जा रही है । आज 1 फीसदी के पास देश की संपत्ति का 51.53 फीसदी हिस्सा है और साठ फीसदी के पास सिर्फ 4.8% हिस्सा है। ऐसे समय में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऐलान किया है कि अगर उनकी पार्टी की सरकार बनेगी तो देश के हर गरीब को न्यूनतम आमदनी की गारंटी दी जाएगी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हर किसान के खाते में लगभग 1500 रुपए दिए जाने की बात कही जा रही है।

वहीं आपको बता दें कि इससे पहले अभी बीते विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में किसान कर्जमाफी के लोक लुभावन वादे कर राज्यों में अपनी सरकार बना ली। इससे पहले भी हम देखते आए हैं कि पार्टियां चुनावों में मंगलसूत्र से लेकर टीवी, फ्रिज, साडियां, लैपटॉप जैसी चीजे बांटती आई हैं लेकिन न्यूनतम आमदनी की गारंटी आज से पहले नहीं दी गई है और इसको देने के बाद कांग्रेस देश में गरीबी खत्म करने का दावा भी कर रही है।

तो पहला सवाल तो यही उठता है कि क्या इससे देश में सच में गरीबी हट जाएगी? दूसरा, इतना पैसा आएगा कहां से, और क्या देश के खजाने में इतना पैसा है जो इस योजना के तहत खर्च किया जा सके।

अगर बात करें कांग्रेस की तो उसका इतिहास रहा है कि वह गरीबी को कई बार मुद्दा बनाकर अपना उल्लू सीधा कर चुकी है। इससे पहले इंदिरा गांधी भीगरीबी हटाओ के नारे के साथ सरकार बना चुकी हैं, और वर्तमान हालात गवाह हैं कि उनका गारीबी हटाओ नारा मात्र एक नारा बनकर ही रह गया था। और अब उनके पोते राहुल गांधी ने भी कुछ ऐसा ही दांव चला है। जिसके बाद राहत इंदौरी की वो शायरी इस परिपेक्ष में बिल्कुल सटीक बैठती है कि नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है ।

वहीं दूसरी तरफ बीजेपी भी अपने अंतिरम बजट में कुछ ऐसी ही गरीबी समर्थक योजनाओं का ऐलान कर सकती है। जहां बड़ी संख्या में लोग भुखमरी से जूझ रहे हों वहां ऐसी योजनाएं कुछ राहत तो पहुँचाएंगी लेकिन ये कोई गरीबों की जिंदगी बदलने वाला फैसला नहीं है। अगर सच में ही गरीबों और अमीरों के बीच का फासला कम करना है तो कुछ ठोस और नीतिगत कदम लेने होंगे। राजनेताओं को ये समझना होगा कि टीबी का इलाज माथे पर बाम लगाने से नहीं होता चाहें वह दिन रात ही क्यों न लगाया जाए।

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