प्रवासी मजदूरों की बसों को लेकर आखिर क्यों छिड़ी है प्रियंका गांधी और योगी आदित्यनाथ में जंग ? जानें
दूरदर्शन पर इन दिनों धारावाहिक चाणक्य प्रसारित हो रहा है, जिसमें आचार्य विष्णुगुप्त और अमात्य राक्षस के बीच सियासी शतरंज जारी है। कुछ उसी अंदाज में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के बीच मजदूरों के मुद्दे पर पर सियासी जंग छिड़ी हुई है। इस जंग में प्रियंका गांधी ने कॉंग्रेस को बीजेपी के बराबर ला कर खड़ा कर दिया है।
दरअसल लॉकडाउन के चलते मजदूरों को घर वापस आने में हो रहीं परेशानी को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के बीच में नौ पत्रों का आदान-प्रदान हुआ। इसमें पहला पत्र प्रियंका गांधी वाड्रा ने 16 मई को लिखा था जिसमें पैदल चल रहे गरीब बेसहारा मजदूरों के लिए प्रियंका गांधी ने 500 बस गाजीपुर (दिल्ली-यूपी बार्डर) और 500 बसें नोएडा बार्डर से चलाने का प्रस्ताव दिया था। जिसके दो दिन बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 18 मई को प्रियंका का ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। तब से अभी तक प्रियंका और योगी आदित्यनाथ के बीच सियासी जंग छिड़ी हुई है।
19 मई को प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह ने अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी को एक पत्र फिर लिखा है। जिसमें उन्होंने राज्य सरकार को जो जानकारी दी है वो ये है कि 11.05 बजे से यूपी बॉर्डर पर ऊंचा नागला के पास बसों को लेकर कांग्रेस के लोग खड़े हैं। आगरा प्रशासन बसों को उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दे रहा है। आपको बता दें कि इससे पहले संदीप सिंह ने अवनीश अवस्थी को एक पत्र लिखकर बताया कि राजस्थान, दिल्ली से नोएडा और गाजियाबाद पहुंच रही हैं।
जहां बसों के परमिट दिलाने की प्रक्रिया चल रही है, इसमें कुछ घंटे का विलंब हो सकता है। लिहाजा उत्तर प्रदेश सरकार बसों के पहुंचने से पहले तक यात्रियों की सूची आदि अपडेट करके प्रियंका गांधी के कार्यालय को उपलब्ध करा दें।
बड़ा सवाल ये है कि क्या उत्तर प्रदेश सरकार के पास बसें नहीं हैं? इस बारे में उत्तर प्रदेश सरकार के एक पूर्व प्रमुख सचिव और मायावती के समय में काफी चर्चा में रहे एक अधिकारी का कहना है कि इस समय विपक्ष का काम सरकार को उसकी कमियां बताना है। विपक्ष अपना काम कर रहा है।
ऐसे तो विपक्ष के इस तरह के प्रयासों से सरकार कभी विचलित नहीं होती। लेकिन इस पूरे प्रकिया से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे राज्य सरकार कहीं न कहीं इस वक़्त खुद को असहाय पा रही थी। उन्होंने कहा कि वह किसी राजनीतिक विषय पर टिप्पणी नहीं करना चाहते।
यहां सरकार का प्रयास राजनीतिक हो गया है। इसलिए उन्हें कुछ कहने में दिक्कत हो रही है। वह इतना ही कह सकते हैं कि जो हो रहा है, वह उत्तर प्रदेश और देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देवी हैं कहती है कि आखिर योगी आदित्यनाथ को हो क्या गया है? गरीब मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने का काम राज्य के मुख्यमंत्री का है। वह इसे नहीं कर पा रहे हैं।
ऐसे समय में राजनीति से ऊपर उठकर कांग्रेस महासचिव ने मदद करने के इरादे से बसों को उपलब्ध कराने का प्रस्ताव दिया। आखिर वह राज्य के मुख्यमंत्री से ही तो बात करेंगी? जब कांग्रेस महासचिव ने बसों को उपलब्ध करा दिया तो अब वह अड़गा रहे हैं। आगे सुष्मिता देवी कहती है कि क्या एक मुख्यमंत्री को ऐसे संवेदनशील समय में यह शोभा देता है। योगी आदित्यनाथ खुद तो विफल हो रहे हैं और ऊपर से कहीं से मदद मिल रही है तो लेना नहीं चाहते।
इस पूरे मामले में अखिलेश यादव ने भी ट्वीट करके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चुटकी ली। उन्होंने कहा कि काम जनता को सब समझ में आ रहा है।जब सरकारी, प्राइवेट और स्कूलों की हजारों बसें खड़ी धूल फांक रही है तो ऐसे समय में प्रदेश सरकार प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए इन बसों का उपयोग क्यों नहीं कर रही है।
ध्यान रहें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 25 मार्च को लॉकडाउन लगने के बाद से लगातार फ्रंटफुट पर खेल रहे थे। सबसे पहले आनंद विहार से मजदूरों को लाने के लिए योगी सरकार ने एक हजार बसें भेजने का निर्णय लिया था, लेकिन इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में दिल्ली में लॉकडाउन की धज्जियां उड़ने पर माफी मांगी थी।
फिर योगी आदित्यनाथ ने दूसरा कदम उठाया था। जिसमें उन्होंने कोटा से छात्रों को लाने के लिए बसें भेजीं थीं। योगी आदित्यनाथ के द्वारा उठाए गए इस इस कदम का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विरोध किया था। साथ ही साथ प्रधानमंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में भी उन्होंने इस मुद्दे को उठाया था।
जिसके बाद योगी सरकार ने फिर एक कदम आगे उठाया था। जिसमें उन्होंने दूसरे राज्यों से उत्तर प्रदेश के गरीब मजदूरों को लाने के लिए अफसरों से प्रोटोकॉल तैयार कराया था। हर राज्य के लिए नोडल अफसर नियुक्त किया गया था। राज्यों से बसों के जरिए गरीब मजदूरों को लाने की योजना बनाई थी, लेकिन उनकी ये योजना मजदूरों के लिए कारगर सिद्ध नहीं हुई थी जिसके बाद मजदूर लॉकडाउन 4.0 की घोषणा सुनकर पैदल ही अपने घर की तरफ निकल पड़े।
भूखे, प्यासे, लंबे लंबे सफर पैदल ही तय कर रहे कई मजदूरों ने इस दौरान अपनी जान गंवाई थी और कुछ ने सड़क हादसों में अपना दम तोड़ दिया था। उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव स्तर के अफसरों ने कहा कि गरीब मजदूरों को लेकर हड़बड़ी में कई निर्णय हो गए, जिसके कारण राज्य सरकार की परेशानी बढ़ गई है।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रवैये पर भाजपा के तीन प्रवक्ताओं ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया है। बीजेपी के एक प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस की तरफ से उपलब्ध कराई गई बसों की सूची में गलत जानकारियां थी। इसके अलावा बसों की फिटनेस का भी मामला है। एक अन्य प्रवक्ता ने बताया कि सरकार इस बारे में उचित निर्णय ले रही है। एक और प्रवक्ता ने कहा कि प्रियंका गांधी वाड्रा को ऐसे समय में राजनीति करने से बचना चाहिए। समय संवेदनशील है और उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश की जनता देख रही है।
गौरतलब है कि तीनों प्रवक्ताओं ने अपनी इस विचार को ऑफ द रिकार्ड बताया। दो प्रवक्ता ने कहा कि यह उत्तर प्रदेश सरकार का मामला है और राज्य सरकार इस मामले में पक्ष रही है।