आखिर हम अंगदान करने से इतना डरते क्यों हैं ?
अंगदान करना आज के ज़माने में भी ग़लत माना जाता है। हम हमेशा कहते हैं कि दूसरों की मदद करनी चाहिए, फिर ऐसा क्यूँ है की जब हमारे शरीर के कुछ अंग किसी और को नयी ज़िंदगी दे सकते हैं तो लोग पीछे क्यूँ हट जाते हैं? जब केवल बोलना होता है तब तो प्यार में लबरेज़ ये पीढ़ी कहती है –
“अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ”
लेकिन जब किसी को जिंदगी देने की बात आती है तो क्या वफ़ा, क्या वादे और क्या इंसानियत सब उड़नछू हो जाते हैं।
जब हम बच्चे स्कूल में पढ़ने जाते थे, तब वहाँ एक विषय हुआ करता था मॉरल साइयन्स के नाम से। शायद आप में से कई लोग इस नाम को भूल चुके होंगे क्यूँकि कभी इस विषय को किसी ने इतनी अहमियत नहीं दी। इस विषय से मेरी भी जो यादें जुड़ी हैं धुंडली पड़ गयी हैं।
अब लगता है मॉरल साइयन्स में जो चीज़ें बतायी या सिखायी गयी एक ख़ुशहाल जीवन जीने के लिए काफ़ी थे। भगवान की पूजा करना, दूसरों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहना, अपनी मदद ख़ुद करना, मेहनत और लगन के साथ कोई भी काम करना, ये सब कुछ बातें थीं जो याद आती हैं मुझे। आज इस शहर में इंसानों के बीच इंसानियत कहीं खो गयी।
मगर हम तो समझदार हैं, मॉरल साइयन्स जैसे विषय को हमेशा किनारे रखा क्योंकि मॉरल साइंस पढ़कर वर्मा जी का बेटा इंजीनियर नहीं बन सकता ना , इसलिए हमने फ़िज़िक्स, गणित जैसे विषयों में अपना दिमाग़ लगाया। अंग दान भी इसी से जुड़ा है।
किसी कारणवश किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उस व्यक्ति के घरवाले अंगदान करने के बजाय उस शरीर को जला या दफ़ना देते हैं। ना जाने ऐसे कितने ज़रूरतमंद लोग हैं जिनको आप नया जीवन दे सकते हैं। हर रोज़ ऐसे हज़ारों मरीज़ होते हैं जिन्हें किसी ना किसी अंग की ज़रूर पड़ती होगी और समय पर ना मिलने के कारण कई अनहोनी हो जाती है।
अंग दान से ना ही सिर्फ़ किसी को नई ज़िंदगी मिलेगी, परंतु आप किसी की दुआ में हमेशा ज़िंदा रहेंगे। अंग दान करने से कतरना नहीं चाहिए।