Tokyo Olympic: सात टांके लगवाकर रिंग में उतरे थे बॉक्सर सतीश कुमार,उनके जज्बे को देश कर रहा सलाम

भारत देश में विभिन्न प्रकार के खेलकूद प्रचलित है। वैसे तो देश वासियों को क्रिकेट और बास्केटबॉल का बहुत शौक है। पर जब बात आती है ओलंपिक्स की, तो देश का हर नागरिक- बच्चे से लेकर बूढ़े तक सब आस लगाए बैठे रहते हैं।
टोक्यो ओलंपिक के चलते पीवी सिंधु और भारतीय हॉकी टीम ने अपनी जगह बना ली और भारत को कांस्य पदक भी दिला दिया।
पर क्या सिर्फ जीतना ही खेल का नियम है? नहीं.. क्योंकि जीतने से भी ज्यादा जरूरी है खेल को सही तरीके और जज्बे के साथ खेलना ।
जिससे एक बहुत ही साहसी व्यक्ति की याद आती है, हम बात कर रहे हैं टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले भारतीय बॉक्सर सतीश कुमार की। सतीश कुमार ने खेल की शुरुआत 2012 की थी। जब उन्हें यह पता भी नहीं था की बॉक्सिंग भी एक अव्वल दर्जे पर खेला जाता है। उनकी दुनिया डब्ल्यूडब्ल्यूई के अंडरटेकर तक ही सीमित थी। धीरे-धीरे कर उन्होंने बॉक्सिंग में अपनी जगह हासिल की, टोक्यो ओलंपिक के प्री क्वार्टर फाइनल को जीतकर क्वार्टर फाइनल में अपनी जगह बनाने की पूर्ण कोशिश की। उनके जज्बे और हिम्मत की क्या बात करें अपने चेहरे पर 7 स्टिचस के साथ उन्होंने विरोधी बॉक्सर का डटकर मुकाबला किया हालांकि, वह यह मैच हार गए लेकिन उन्होंने अपने जज्बे, ताकत और हिम्मत का भारी प्रदर्शन किया।
भारत के सतीश कुमार मौजूदा विश्व और एशियाई चैंपियन उज्बेकिस्तान के बखोदिर जलोलोव के खिलाफ अपने पहले खेलों के क्वार्टर फाइनल से बाहर हो गए। सतीश ओलंपिक में प्रतिस्पर्धा करने वाले भारत के पहले सुपर हैवीवेट (+91 किग्रा) मुक्केबाज हैं। सतीश कुमार ने काफी साहस और सही इरादे के साथ अच्छा प्रदर्शन देने की पूर्ण कोशिश की लेकिन सतीश कुमार का कद बराबर ना होने के कारण कई बार वे खेल को संभाल नहीं पाए। सतीश कुमार के चेहरे पर चोट के निशान थे, उसके बावजूद वह डटे रहे और मुकाबले को टक्कर का रखा। सतीश कुमार को काफी ज्यादा साहसी बताया जा रहा है, सोशल मीडिया पर उनके भारतीय फैंस ने उनकी काफी सराहना की है। सतीश कुमार की आंख और चिन के नीचे काफी ज्यादा गहरी चोट आई है, इसके बावजूद उन्होंने यह सोच लिया कि वह नंबर 1 बॉक्सर के आगे मुकाबला करेंगे और डट कर खड़े रहेंगे।
सतीश कुमार की पत्नी और घर वालों ने भी उन्हें काफी मना किया कि इतनी चोट लगने पर उन्हें रिंग में नहीं जाना चाहिए पर उनकी हिम्मत और साहस की सराहना करनी चाहिए कि इतनी चोट लगने के बावजूद वह एक मजबूत खिलाड़ी के सामने खड़े रहे और मुकाबला किया।
भले ही वह क्वार्टर फाइनल हार गए, लेकिन उनके हिम्मत और लगन ने पूरे भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय लोगों के दिल में जगह बना ली है।
देश के बड़े-बड़े खिलाड़ियों का यह मानना है कि खेल को सिर्फ जीतना ही नहीं बल्कि पूरी लगन और मेहनत के साथ खेलना बहुत जरूरी है। सतीश कुमार ने विकट परिस्थितियों में भी खेल को पूर्ण तरीके से खेला और जीतने का साहस रखा। यही एक सच्चे खिलाड़ी की परख है।