कभी खाने को नहीं थी रोटी, अब फिटनेस में कई बड़ी टीमों को मात दे रही है भारतीय महिला हॉकी टीम

सार

भारतीय महिला हॉकी टीम का औसत यो यो टेस्ट स्कोर 19-21 के बीच, इस मामले में ऑस्ट्रेलिया भी मात खा जाता है।

विस्तार

भारतीय हॉकी टीम उन महिलाओं से मिलकर बनी ,है जिन्होंने जब हॉकी की स्टिक को थामा था तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती थी। किसी के पिता दर्जी के रूप में लोगों के कपड़े सिलते थे, तो किसी की मां मजदूरी करती थी। किसी के पिता टांगा चलाते थे और हॉकी की स्टिक दिलाने तक के पैसे भी ना थे। किसी के पिता फिटर थे।

लड़कियों ने हॉकी पकड़ी थी तो किसी ने यह न सोचा था कि 1 दिन उन्हें ओलंपिक के सेमीफाइनल में जाने का मौका मिलेगा। पर उन्हें खुशी इस बात की बहुत थी कि पहनने के लिए जूते और टी शर्ट जो मिल रहे हैं । यह वही लड़कियां हैं जिन्हें खाना नसीब नहीं होता था इसी के चलते उनके प्रारंभिक प्रशिक्षक उन्हें शुरुआत में हॉकी पकड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। सुविधाएं मिली है तो आज ही लड़कियां दुनिया की सबसे फिट टीमों में शुमार हो गई हैं।

भारतीय टीम के फिटनेस के आगे नतमस्तक कंगारू

यह कोई हैरान होने वाली बात नहीं है। महिला हॉकी टीम के यो यो टेस्ट का औसत को 19 से 21 के बीच का हो गया है, जिसकी वजह से भारत से मुंह की खाने वालों आस्ट्रेलिया भी इस मामले में उनकी आगे मात खा जाता है। रियो ओलंपिक के दौरान चीनी पहलवान से पैर तुड़वाने वाली विनेश फोगाट को ठीक करने वाले दक्षिण अफ्रीकी फिजिकल ट्रेनर वायने लोंबारड ने महिला हॉकी टीम की सूरत बदल कर रख दी। निशा वारसी ,नेहा गोयल शर्मिला की कोच भारतीय कप्तान प्रीतम रानी सिवाच कहती हैं कि टोक्यो में ह्यूमिडिटी का स्तर जितना है उसमें बिना उच्चस्तरीय फिटनेस के खेला नहीं जा सकता। आज के समय में हॉकी का खिलाड़ी बनना बहुत मुश्किल है। इसके लिए सबसे जरूरी है फिटनेस। हम फिटनेस में नहीं मार खाए बल्कि इस मामले में ऑस्ट्रेलिया टीम हमसे मार खा गई।

भारतीय खिलाड़ियों को लोंबार्ड देते थे रोजाना नंबर

हालांकि लड़कियों की फिटनेस पर पहले भी काफी काम किया गया था । लेकिन उनकी रिकवरी नहीं होने के कारण वह चोटिल जल्दी हो जाया करती थी । लोंबार्ड ने इसकी अनोखी काट निकाली । उन्होंने फिटनेस कराने के बाद रिकवरी के लिए सभी खिलाड़ी को नंबर देने का फैसला किया। हाइड्रो थेरेपी, मसाज ,आधे घंटे की नींद, कूलिंग बैग, स्विमिंग पूल जाने के लिए अलग-अलग नंबर निर्धारित कर दिए गए थे। गूगल डॉक्यूमेंट पर जाकर खिलाड़ियों को एंट्री करनी होती थी उस सभी को लोंबार्ड नंबर देते थे। इससे यह हुआ कि चोटिल होने की समस्या पर रोक लग गई।

दोपहर की सर्दी में जैकेट पहनकर की जाती थी प्रैक्टिस

टोक्यो में ह्यूमिडिटी का अस्तर और गर्मी काफी ज्यादा है । महिलाओं को बेंगलुरु में दोपहर में सर्दियों की जैकेट पहना कर प्रैक्टिस कराई जाती थी, जिससे टोक्यो में उन्हें ज्यादा परेशानी ना हो।

दंगल जॉर्डन और मैरी कॉम की बायोपिक देखी

लॉकडाउन के चलते टीम बेंगलुरु में बायो सिक्योर बबल में तैयारी कर रही थी। यह काफी कठिन समय था । ऐसे में टीम मैनेजमेंट खिलाड़ी को प्रेरित करने के लिए हिंदी फिल्म जैसे कि दंगल, माइकल जॉर्डन और मैरीकॉम की बायोपिक दिखाने का फैसला किया। इन फिल्मों से खिलाड़ियों को काफी प्रेरणा मिली।

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