वो ख़ुदगर्ज़ है थोड़ा, अपने बारे में कम सोचता है !
आज की दुनिया में जहाँ हर इंसान अपनी ख़्वाहिशों को पूरा करने के लिए भाग रहा है, वहाँ अपने स्वास्थ्य का ध्यान न रख पाना आम बात है। पर अब इस माडर्न और डेवलपिंग सोसाइटी में लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरुक हो रहें हैं, और फ़िट्नेस की ओर क़दम बढ़ा रहे हैं। हम बाहर से अच्छे दिखें इसके लिए हम जिम जाते हैं, रोगों से बचने के लिए अपने खान-पान का ध्यान रखते हैं और नियमित तौर पर डॉक्टर की सलाह लेते रहते हैं, पर हमारा एक बहुत ज़रूरी अंग ऐसा भी है, जिससे हम ध्यान करते हैं पर उसके स्वास्थ्य पर कभी ध्यान नहीं जाता – दिमाग़।
कितना ख़ुदगर्ज़ है हमारा दिमाग़ अपने बारे में कभी नहीं सोचता। दिमाग़ की सेहत को हम हमेशा ही नज़रंदाज़ करते हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से ख़ुश होना अच्छी मेंटल हेल्थ को दर्शाता है। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी हम जो कुछ भी करते है, सोचते हैं, उसका सीधा असर हमारे दिमाग पर पड़ता है। मानसिक तौर पर स्वस्थ ना होना हमारे समाज में ग़लत समझा जाता है। इसी डर से हम इस समस्या को किसी से साझा नहीं करते जो कि इस चीज़ को और बढ़ावा देता है और फिर धीरे धीरे इंसान डिप्रेशन में चला जाता है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनायज़ेशन के अनुसार 2018 में भारत में क़रीब 5 करोड़ लोग डिप्रेशन के शिकार हैं जिसमें से ज़्यादातर 18-25 साल उम्र के लोग हैं। नींद कम या बहुत ज़्यादा आना, किसी भी काम में मन ना लगना, बातें ना करना, शांत रहना ये डिप्रेशन के कुछ लक्षण हैं।
अकेलापन महसूस करना, बहुत ज़्यादा स्ट्रेस या टेन्शन लेना भी हमारी मानसिक स्तिथि को बिगाड़ सकता है। मेंटल हेल्थ को सही रखने के लिए हमें सबसे पहले तो इस बीमारी को किसी और आम बीमारी की तरह समझना होगा। समाज को इसे समझना पड़ेगा और इससे जूझ रहे व्यक्ति को भी।
अगर आपको लगे कि कोई व्यक्ति डिप्रेशन या किसी और मानसिक बीमारी का शिकार है तो उससे दूर भागने के बजाय उसके पास जा कर उससे बात करें और कोशिश करें कि उसके आस पास का माहौल ख़ुशनुमा रखा जाए। अपनी सेहत का ध्यान रखें और अपने दिमाग़ का भी। वो ख़ुदगर्ज़ है थोड़ा, अपने बारे में कम सोचता है।